डर लगता है

पतंगे उड़ाने में डर लगता है 
दिल की बताने में डर लगता है 
शहादते जब कमाने का जरिया बनने लगे 
तो फिर इस देश पर कुर्बान होने पर डर लगता है 



खिंच गयी घर में ही जब लकीरें मजहब के नाम पर 
अब तो इन बागों पर टहलने में डर लगता है 



बहा तो आते है अपने पापो को संगम में तेर
पर क्यों ये गंगा जल पिने में डर लगता है 



बन गये है भगवन अब  विशाल आशियाने तेरे
तेरे दर पर बस मुराद लेकर आने में डर लगता है 


प्यार के नाम पर बस जरूरते भर ही रह गयी मन में
अब तो किसी से दिल लगाने में डर लगता है 


भूत  बन के भटकता रहे प्रांजल मरने पर
यहाँ इन्सान बन पैदा होने पर डर लगता है 



भूतों की बारात https://pranjalkandwal.blogspot.com/2019/03/blog-post.html

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