मेरे गाँव का मकान
कब से इनतजर में हुँ
बस एक सवाल के जवाब के
की एैैसी क्या गल्ती मुझसे हुयी
की मुख मोड़ लिया तो सुुद भी ना ली मेरी
कोई जाकर उनको ये बता दो
मैनेंं तो रखा है संभाल कर
उनका वो बचपन वो यादें वो सपने
जो बिताये थे मेरी दहलीज पर
आये और ले जाये
मुझसे तो अब इनका बोज उठता नही
एक दौर था जब चुन चुन कर दरख्तों को कांधे पर लाये थे
गीली मिट्टी बेजान पत्थरों को तरास कर मुझमे जान भरी थी
पर अब जर्जर हो गया हुँँ में
गिरने लगा है शरीर का हर एक टुकड़ा
संभालने को कोई नही
किसे अवाज दू
ये पंछी भी अब छोड़ उड़ चले है
जिनके धरोंदे थे संग मेरे
अब तो आशियाना बन बैैठा हु
बस विषधरो का में
कुछ अजनबी सी लताओं ने
आकर घेर लिया है मुझको
हर बढ़ते वक़्त के साथ
कसता जाता है उनका ये फन्दा
और मरता जाता है यकी मेरा
अब विश्वास तो नही पर हाँँ
एक उमीद सी है
सायद कोई लौट ही आये
अपने बचपन को खोजता हुआ कभी
और आजाद कर दे मेरी रूह को
इन जड़ो के जाल से
जिससे ये ढाचा फिर मिल जाये मिट्टी में
एक नया घर बनने के लिए
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